NH 74 scam case

एनएच 74 घोटाला मामला: दस आरोपियों को हाईकोर्ट से लगा झटका, हाईकोर्ट ने निचली कोर्ट के फैसले को बताया सही

NH 74 scam case

NH 74 scam case

NH 74 scam case- उत्तराखंड हाईकोर्ट में आज चर्चित एनएच 74 घोटाले के दस आरोपियों के मामले में सुनवाई हुई। सुनवाई में एनएच 74 घोटाले के सभी दस आरोपियों को हाईकोर्ट से झटका लगा है। हाईकोर्ट ने सभी 10 आरोपियों की याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

साथ ही हाईकोर्ट ने मामले में निचली कोर्ट के फैसले को सही बताया है। ये सुनवाई न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की एकलपीठ में हुई। एकलपीठ ने एनएच 74 घोटाले के दस आरोपियों पर निर्णय देते हुए सभी की याचिकाओं को निरस्त कर दिया है। इस मामले में कोर्ट ने 24 अप्रैल को सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

क्या है एनएच 74 घोटाला: एनएच 74 घोटाले में एसआईटी ने 2,011 करोड़ रुपये के घोटाले की पुष्टि 2017 में की थी। जिसमें कई अधिकारी, कर्मचारी व किसान शामिल थे। जिन्होंने किसानों की कृषि योग्य भूमि को अकृषि दिखाकर यह कार्य किया।

1 मार्च 2017 को तत्कालीन आयुक्त सैंथिल पांडियन ने घोटाले की आशंका जताई। जिला अधिकारी उधमसिंह नगर को जांच के आदेश दिए। जांच सही पाए जाने पर तत्कालीन एडीएम प्रताप साह ने पंतनगर के सिडकुल थाने में मुकदमा दर्ज करवाया। इस मामले में कई लोगों के नाम सामने आए। उन्हें जेल भेज दिया गया, जबकि दो आईएएस अधिकारी भी निलंबित हुए। अभी एनएच 74 घोटाले के आरोपी जमानत पर रिहा है।

वहीं इस मामले के अनुसार डीपी सिंह, अर्पण कुमार, संजय कुमार चौहान, विकास कुमार, भोले लाल, भगत सिंह फोनिया, मदन मोहन पलड़िया, बरिंदर सिंह, बलवंत सिंह, रमेश कुमार और ओम प्रकाश ने अलग अलग याचिकाएं दायर कर निचली अदालत के 28 अप्रैल 2022 के आदेश को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने ईडी को आदेश दिया था कि इनके खिलाफ अलग अलग शिकायतों के आधार पर अलग अलग मुकदमे दर्ज किये जायें। जिसके बाद ईडी ने उनके खिलाफ अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए गए।

याचिकाओं में कहा गया यह आदेश गलत है। पहले के मुकदमे को वापस नहीं लिया जा सकता। घोटाले में आरोपियों के खिलाफ अलग-अलग शिकायतें दर्ज हैं, किसी के खिलाफ एक तो किसी के खिलाफ दो या तीन शिकायतें हैं। डीपी सिंह के खिलाफ सात शिकायतें दर्ज हैं। अगर वे एक केस में उपस्थित नहीं होने का प्रार्थना पत्र देते हैं तो उन्हें अन्य छह केसों में भी प्रार्थना पत्र देना पड़ेगा। नहीं देने पर उनके खिलाफ कुछ भी आदेश हो सकता है। इसलिए इस आदेश को निरस्त किया जाये। सभी शिकायतों को एक ही मुकदमे में सुना जाये।